आरोग्यवर्धिनी वटी
इस योग का परिचय तो इसके नाम से ही प्रकट हो जाता है। आरोग्य
प्रदान करने वाले और स्वास्थ्य की रक्षा करने वाले इस योग का नामकरण बहुत
विकृतियों को दूर कर निस्सन्देह आरोग्य का वर्द्धन करता है। आज भी यह योग
आयुर्वेदिक चिकित्सक वैद्यों का प्रिय और विश्वास भाजन बना हुआ है।
घटक द्रव्य-शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लाह भस्म, अभ्रक भस्म,
ताम्र भस्म, १०-१० ग्राम, त्रिफला ६० ग्राम, शुद्ध शिलाजीत ३० ग्राम,शुद्ध
गुगल ४० ग्राम, चित्रक मूलका छाल ४० ग्राम और कूटकी २२० ग्राम। सबको
विधि पूर्वक मिलाकर, नीम के पत्तों के रस में तीन दिन तक खरल करके १-
१ रत्ती की गोलियां बना ली जाती हैं। बस, आरोग्यवर्द्धिनी वटी तैयार हो।
नीम के पत्तों का रस निकालने के लिए पत्तों को थोड़ा कूट कर पानी
में उबाला जाता है। पत्तों के नरम होने पर उतार कर इन को निचोड़ने से रस
निकल आता है।
मात्रा व सेवन विधि - इसको आयु और आवश्यकता के अनुसार 1
से 4 गोली एक खुराक में, दिन में दो बार, आम तौर से दूध या जल के साथ
सेवन किया जाता है या रोग के अनुसार उचित अनुपान के साथ निर्देशानुसार
सेवन किया जाता है
उपयोग - यह वात पित्त या कफ जनित ज्वर और कुष्ठ रोग की
प्रसिद्ध औषधि है। यह पाचक, दीपन, पथ्य कारक, हृदय के लिए हितकारी,
मेढ (चर्बी)घटाने वाली, मलशुद्धिकारक, बहुत भूख बढ़ाने वाली और
आमतौर से सभी रोगों का शमन करने वाली श्रेष्ठ औषधि है। यह प्रत्येक घर
में रखी जाने योग्य 'यथानाम तथा गुण' वाली श्रेष्ठ आयुर्वेदिक औषधि है
जिसका सेवन किसी भी ऋतु में, किसी भी आयु वाले व्दारा किया जा सकता
है। जिन जिन व्याधियों को दर करने के लिए निरापद रूपसे इसे सेवन कर
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है उन व्याधियों के विषय में उपयोगी
संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा हैआमतौर से सभी रोगों का शमन करने वाली श्रेष्ठ औषधि है। यह प्रत्येक घर
में रखी जाने योग्य 'यथानाम तथा गुण' वाली श्रेष्ठ आयुर्वेदिक औषधि है
जिसका सेवन किसी भी ऋतु में, किसी भी आयु वाले व्दारा किया जा सकता
है। जिन जिन व्याधियों को दर करने के लिए निरापद रूपसे इसे सेवन कर
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है उन व्याधियों के विषय में उपयोगी
संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
की शिकायत आमतौर से होती पाई जाती है । प्रायः इस शिकायत को दूर
पाचन संस्थान- आजकल अपच, कब्ज़ औरठीकसे भूख न लगने
करने के लिए पाचकचूर्ण अथवा किसी योग का प्रयोग किया जाता है जिससे
अल्पकालीन तात्कालिक लाभ हो जाता है पर व्याधि जड़ से नष्ट नहीं होतीयह वटी पाचक रस को उचित और यथोचित मात्रा में उत्पन्न कर दीपन कार्य
करती है जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है और कब्ज़, अपच और भूख न लगने
की शिकायत समाप्त होती है। यह वटी प्रसाद धातुओं के वैषम्य को नष्ट कर
उन्हें सबल और पुष्ट करती है और धातुओं की क्षमता बढ़ाती है। इस तरह यह
वटी पाचन संस्थान को स्थायी बल प्रदान करती है।
हृदय को हितकारी- दिन-ब-दिन अनेक कारणों से हृदय की
दुर्बलता व पीड़ा का होना बढ़ता जा रहा है। हृदय की किसी स्पष्ट विकृति के
लिए तो नहीं, पर दिल की कमजोरी दूर करने और उसे बल प्रदान करने के
मामले में इसका सेवन बहुत गुणकारी सिद्ध हुआ है। यह हृदय को उत्तेजित
किये बिना ही इसकी निर्बलता दूर करती है।
चर्बी बढ़ाना - शरीर में फालतु चर्बी से मोटापा बढ़ता है जिससे कई
व्याधियां उत्पन्न होती हैं। धातुओं का विकास और पोषण ठीक ढंग से न होने
पर मेद (चर्बी) नामक धातु बढ़ने लगती है। यह वटी दीपन और पाचन क्रम
को सुधार कर इसकी शक्ति बढ़ाती है और सभी धातुओं को विकसित और
रूपान्तरित करती है अतः चर्बी को बढ़ने नहीं देती। चर्बी बढ़ने से शरीर
भारी, सुस्त व कमजोर हो जाता है। यह वटी मेद वृद्धि को रोकती है और उसे
पचाती है इससे मोटापा कम होने लगता है अतः अपने शरीर को उचित
अनुपात में सुडौल बनाये रखने के लिए यह वटी सेवन करना उत्तम है।
ज्वर - कब्ज़, अपच, आम दोष, पित्त की विषमता आदि कराणों से
होने वाले ज्वर, लम्बे समय तक बार बार लौट आने वाले ज्वर और पुराने
ज्वर को ठीक करने के लिए इस वटी का उपयोग उत्तम है। बार बार मुंह में
पानी आना, झाग युक्त उल्टी होना, भोजन करते ही उल्टी होना, पेट में जड़ता
और भूख में गिरावट होने पर इस वटी का सेवन करना हितकर है। हल्का सा
ज्वर मालूम देने, शरीर में टूटन और कमज़ोरी मालूम देने पर भी स्पष्ट ज्वर
न होने की स्थिति में यह वटी हितकर है
मलशुद्धि - शरीर स्वस्थ और निर्विकार बना रहे इसके लिए शरीरसे
मल प्रतिदिन भली भांति निकल जाया करे यह बहुत ज़रूरी है। इस कार्य के
लिए जुलाब लेना उचित नहीं बल्कि एनीमा लेना और आरोग्यवर्धिनी का
सेवन करना अत्युत्तम है। सिर दर्द, जड़ता, कठोर क़ब्ज़ और अनिद्रा आदि
की स्थिति तीव्र हो तो तत्काल और तेज़ असर के लिए जुलाब लिया जा
सकता है ताकि मल शुद्धि हो जाने से इन व्याधियों की तीव्रता तुरन्त कम ।
सके अन्यथा मल शोधन के लिए सौम्य औषधि देना ही श्रेष्ठ होता है । यह
वटी ऐसी ही सौम्य औषधि है। बड़ी आंत में जमे हुएव सूख कर कठोर होकर
आंत में चिपके हुए मल को हटाने के लिएयह वटी निरापद रूपसे उपयोगी है
दांत व मसूढ़ों में जमे मल और नाक में जमे किट्ट से दुर्गन्ध उत्पन्न होती है
इसे दूर करने के लिए यह वटी उत्तम औषधि है । मलशुद्धि न होने पर जो जो
रोग उठ खड़े होते हैं उनसे बचने का एक ही तरीका है कि मलावरोध न होने
दिया जाए और यह वटी शरीर में कहीं भी मल रहने नहीं देती। मल शुदि के
लिए इसे त्रिफला चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए।
सर्वांग शोथ - शरीर के किसी अंग पर शोथ (सूजन) होने, मुख
कण्ठ हाथ पैरों के टखनों पर विशेष शोथ होने पर इस वटी का सेवन हितकारी
है। इसे दशमूल काढ़े के साथ सेवन करने से सब तरह के शोथ नष्ट होते हैं।
उच्च रक्त चाप- उच्च रक्त चाप के कारण सिर दर्द, चेहरे पर तनाव,
नेत्रों में दर्द या लाली होना, अनिद्रा, व्याकुलता और मलावरोध आदि लक्षण
प्रकट होते हैं। ऐसी स्थिति में १-१ रत्ती की १-१ गोली अमलतास के गूदे से
सिद्ध किये हुए दूध के साथ दिन में ३-४ बार देना चाहिए। थोड़े दिनों में
विकार का शमन हो जाता है और सब लक्षण नष्ट हो जाते हैं।
मासिक अति रक्त साव - रक्त चाप में वृद्धि व दबाव के कारण
किसी-किसी स्त्री को मासिक धर्म के दिनों में बहुत ज्यादा रक्त स्राव होता है
जिसे रोकने की औषधि देकर रोका जाए तो भयंकर सिर दर्द और शरीर में
हड़फूटन आदि कष्ट होते हैं अतः रक्त रोकने की दवा न देकर मूल कारण को
दूर करने के लिए आरोग्यवर्द्धिनी और चन्द्रप्रभावटी १-१ गोली अमलतास
के गूदे से सिद्ध किये हुए दूध के साथ दिन में 2 बार देते रहने से रक्त दबाव
और रक्त स्राव निवृत्त हो जाता है। इस योग को लाभ न होने तक लगातार
सेवन करना चाहिए। यह वटी उत्तम पाचन, भूख बढ़ाने, शरीर के स्रोतों का
शोधन करने, हृदय को बल देने, मोटापा कम करने, रक्त चाप सामान्य
रखने, मल शुद्धि करने और यकृत, प्लीहा, वस्ति, वृक्क, गर्भाशय, आन्त्र के
लिए तथा आन्तरिक शोथ को दूर करने के लिए बहुत गुणकारी योग है।
सावधान - गर्भवती स्त्री और दाह, प्यास, भ्रम और कुपित पित्त के
प्रकोप से ग्रस्त व्यक्ति को यह वटी सेवन नहीं करना चाहिए।








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