आयुर्वेद शास्त्र में एक से बढ़ कर एक गुणकारी योग मौजूद हैं जिनका
आवश्यकता के अनुसार, उचित ढंग से उपयोग करके लाभ उठाया जा सकता है। ऐसे
ही उत्तम योगों में एक उत्तम योग है - 'अमृतारिष्ट' । इस योग की गुणवत्ता और
उपयोगिता का परिचय पढ़ने पर आप जान जाएंगे कि अमृतारिष्ट' अनेक व्याधियों
को नष्ट करने के लिए अकेला ही काफ़ी है ।
अमृतारिष्ट का परिचय प्रस्तुत है।
घटक द्रव्य - गिलोय १ किलो, दशमूल १ किलो, तीन किलो गुड़,
जीरा ६० ग्राम, पित्तपापड़ा २० ग्राम, तथा सतोना (सप्तपर्ण) की छाल,
काली मिर्च, सोंठ, पीपल, नागरमोथा, नागकेसर, अतीस, कुटकी और
इन्द्रजौ-ये सब १ द्रव्य १०-१० ग्राम ।
निर्माण विधि - गिलोय और
गिलोय और दशमूल के द्रव्य को मोटा मोटा
(जौकुट)कूट कर लें और आठ लिटर पानी में डाल कर इतनी देर उबालें कि
पानी टूट कर दो लिटर बाकी रह जाए। इसे ठण्डा करके, मसलते हुए, मोटे
कपड़े से छान लें और तीन किलो गुड़ मसल कर डाल दें। अन्य सभी ११ द्रव्य
भी कूट पीस कर इसी में डाल दें, अब इस मिश्रण को चीनी मिट्टी के बर्तन में
डाल कर ढक्कन लगा दें और कपड़ मिट्टी करके ढक्कन को एयरटाइट ढंग
से बन्द कर दें। इसे ३० दिन तक ऐसे ही रखा रहने दें, फिर ३० दिन बाद
ढक्कन खोल कर इसे बॉटलों में भर लें। यही अमृतारिष्ट है। यहाँ से खरीदे https://amzn.to/3mb73HN
मात्रा और सेवन विधि- वयस्क स्त्री पुरुष ४-४ चम्मच और बच्चे
२-२ चम्मच, आधा कप पानी में डाल कर भोजन के बाद दोनों वक्त पिएं।
उपयोग - इस योग का उपयोग उदर की व्याधियों और सब प्रकार
के ज्वरों की चिकित्सा में किया जाता है। अपच. मन्दाग्नि, यकृत (लिवर)
की कमजोरी और उदर रोगों और जीर्णज्वर, शीतज्वर पित्त प्रधान ज्वर,
विषम ज्वर, मियादी ज्वर तथा अन्य ज्वरों को दूर करने वाला उत्तम
आयुर्वेदिक योग है। ज्वर और ज्वर के प्रभाव से उत्पन्न हुई शारीरिक निर्बलताको दूर करने वाला यह उत्तम योग है।
किसी भी प्रकार के ज्वर की चिकित्सा में अमृतारिष्ट का सेवन बेखटके कराया जा सकता है । यह योग रुधिर के
विकारों को बहुत अच्छी तरह से निकाल फेंकता है। तेज़ बुखार में भी इसका सेवन कराया जा सकता है। अपच और मन्दाग्नि दूर कर पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए अमृतारिष्ट का सेवन बहुत हितकारी होता है क्योंकि इसके सेवन से आमाशय में पाचक रसों का साव उचित मात्रा में होने लगता है जिससे पाचन क्रिया ठीक काम करने लगती है अर्थात् अपच की स्थिति खत्म हो जाती है भूख खुल कर लगने लगती है। यकृत को बल मिलता है, रक्तपित्त का स्राव अच्छी मात्रा में होने लगता है जिससे रक्त के रक्तकणों की वृद्धि होती है और हिमोग्लोबिन की कमी दूर होती है , रक्ताल्पता (एनीमिया) की स्थिति खत्म होती है यानी हिमोग्लोबिन सामान्य स्थिति तक बढ़ जाता है, इससे मुखमण्डल की निस्तेजता दूर होती है और चेहरा चमकने लगता है।
पाचक अंगों में आमाशय के अलावा यकृत (लिवर) को अमृतारिष्ट के सेवन से बल मिलता है, पित्त स्राव भली भांति होने लगता है, लिवर अपना काम ठीक से करने लगता है, जिससे यकृतजन्य व्याधियां ठीक होती हैं
इसके सेवन से जब पाचन शक्ति प्रबल हो जाती है तोखाया पिया अंग लगने लगता है और शरीर में रक्त, मांस, बल आदि की वृद्धि होने लगती है जिससे शरीर सुडौल, पुष्ट और बलवान बनता है।
ज्वरों का नाश करने में सहायक यह औषधि सब प्रकार के ज्वरों के लिए महान औषधि है कुछ दिन तक ज्वरनरह कर पुनः पुनः उलट आने वाला ज्वर भी इस योग के सेवन से ठीक हो जाता है।
जीर्ण ज्वर लम्बे समय तक बना रहता है जिससे प्लीहा (Spleen) वृद्धि हो जाती है, पाचक अग्नि मन्द
हो जाती है जिससे शरीर में रस रक्त आदि धातुओं का न तो ठीक से निर्माण होता है और न उचित वृद्धि विकास ही होता है इसलिए शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और पाण्डु रोग (एनीमिया) हो जाता है। यकृत-प्लीहा की वृद्धि हो जाने पर पित्त स्राव अनियमित हो जाता है आंत व पेट में दर्द होना, आवाज़ होना, भारी पन होना आदि लक्षणों के अलावा अपच की स्थिति बन जाती है और पतले दस्त होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अमृतारिष्ट का सेवन करना अति लाभकारी होता है। यह पाचक पित्त को उत्तेजित और नियमित कर पाचन क्रिया को सुधारता और भूख बढ़ाता है। रंजक पित्त की गति सुधार कर रक्त कणों की वृद्धि करता है जिससे हिमोग्लोबिन काउण्ट सामान्य हो जाता है और रक्ताल्पता की स्थिति समाप्त हो जाती है।
अधिक दिनों तक जाड़ा लग कर आने वाले ज्वर को भी अमृतारिष्ट का सेवन कर भगाया जा सकता है। इस अवस्था में भी यकृत और प्लीहा की वृद्धि हो जाती है और ऊपर बताये गये उपद्रव पैदा हो जाते हैं। इन उपद्रवों का
नाश करने के लिए अमृतारिष्ट अमृत के समान काम करता है। इसके साथ आधा चम्मच महासुर्दशन चूर्ण फांक कर लेने से सब प्रकार के ज्वर शीघ्र दूर होते हैं। संक्रमण से होने वाला ज्वर भी ठीक हो जाता है।
महिलाओं का प्रसूति ज्वर
अमृतारिष्ट स्त्री-पुरुष के उदर विकार और सब प्रकार के ज्वरों की अक्सीर दवा तो है ही पर विशेष कर सिर्फ़ स्त्रियों को ही होने वाले प्रसूति ज्वर या सूतिका रोग, को भी दूर करने की उत्तम दवा है। प्रसूता स्त्री द्वारा प्रसवकाल
के दौरान की गई बदपरहेज़ी और आहार-विहार की लापरवाही के कारण यह व्याधि होती है इसलिए इसे प्रसूता ज्वर या सूतिका ज्वर कहते हैं । रक्त में व्याप्त सूतिका-विष को नष्ट करने के लिए इसके साथ प्रतापलंकेश्वर रस, आधा ग्राम मात्रा में, शहद व अदरक के रस में मिला कर प्रसूता को देना चाहिए। सूतिका ज्वर में दशमूलारिष्ट भी देते हैं लेकिन पित्त प्रधान ज्वर में जिसमें हाथ पैरों में जलन होती हो, पेट में जलन होती हो, प्यास ज्यादा लगती हो, चक्कर आते हों, शीतलता और शीतल पदार्थ अच्छे लगते हों और ज्वर की गर्मी से शरीर तपता हो तो ऐसी स्थिति में अमृतारिष्ट का ही सेवन कराना चाहिए क्योंकि यह ज्वर नाशक होने के साथ ही पौष्टिक और पित्त शामक भी होता है इसलिए प्रसूति ज्वर से ग्रस्त व पीड़ित महिलाओं के लिए भी अमृतारिष्ट का सेवन हितकारी होता है।
व्याधियों के अलावा अमृतारिष्ट प्रमेह और बहुमूत्र रोग को भी उखाड़ फेंकता है। इस योग का प्रमुख घटक द्रव्य गिलोय है जिसे अमृत के समान गुणकारी होने से संस्कृत में अमृता भी कहा है इसीलिए इस योग का नाम अमृतारिष्ट रखा गया है। गिलोय के सब उत्तम गुण अमृतारिष्ट में होते हैं। मूत्राशय की कमजोरी के कारण बार-बार पेशाब होने की शिकायत इसके सेवन से दूर हो जाती है। सुजाक या उपदंश के रोगी को अमृतारिष्ट
का सेवन करने से आराम होता है। इतना विवरण पढ़ कर आप यह तो समझ ही गये होंगे कि अमृतारिष्ट
'यथा नाम तथा गुण' अमृत के समान गुणकारी और लाभकारी है। आजकल ये सभी व्याधियां ज्यादातर स्त्री पुरुषों को होती देखी ही जाती हैं इसीलिए हमने इन सभी व्याधियों को नष्ट करने वाले इस उत्तम आयुर्वेदिक योग
अमृतारिष्ट का विशद परिचय आपकी जानकारी के लिए प्रस्तुत किया है। यह योग आसानी से, आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दूकान पर बना-बनाया बाज़ार में सब जगह मिलता है। जिन को ज्वरन हो सिर्फ उदरविकार हो, पित्त कुपित रहता हो यानी एसिडिटी बनी रहती हो, भूख कम लगती हो, पाचन क्रिया ठीक से न होती हो, शरीर दुबला पतला हो, गैस बनती हो तो वे भी अमृतारिष्ट का सेवन २ से ३ माह तक करें, अवश्य ही सब शिकायतें दूर हो
जाएंगी। इसे बच्चे, जवान, प्रौढ़, वृद्ध, स्त्री-पुरुष और गर्भवती स्त्री सब सेवन कर सकते हैं।
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